सृष्टि को सर्वनाश से बचाने के लिए भगवान शिव ने वो किया जो सिर्फ हर किसी के वश में नहीं थी। भगवान शिव विष पी गए। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने उनके सिर पर भांग, धतूरा, बेलपत्र रख दिया। इससे भगवान शिव पर विष का असर कम हो गया और भोले बाबा को शीतलता मिली। ऐसा माना जाता है कि इसलिए इसे शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। चाहे वो सावन का सोमवार हो या फिर महाशिवरात्रि में हो सभी में भांग, धतूरा, बेलपत्र चठाया जाता है। भगवान को अर्पित किए जाने वाले हर प्राकृतिक फल-फूल के पीछे जीवनोपयोगी संदेश छिपा है।
भगवान शिव पर भांग, धतूरा, आक, और बेलपत्र अर्पित करने के पीछे भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। शिव महापुराण के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो उसमें पहले विष निकला। कहा जाता है कि ये विष इतना जहरीला था कि इसकी गर्मी से पूरी सृष्टि जलने लगी थी। देवता और असुर विष से डर गए और इसका नाश करने का उपाय खोजने लगे।
तब भगवान शिव ने समस्त सृष्टि की रक्षा के लिए इस विष को पी लिया। हालांकि, भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीलवर्ण हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष के प्रकोप को संतुलित करने के लिए शिव को ठंडी चीजें पसंद आईं, जिनमें भांग, धतूरा, आक और बेलपत्र प्रमुख हैं। ये सभी चीजें शीतलता प्रदान करती हैं और इसी कारण शिवलिंग पर इन्हें अर्पित किया जाता है।
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